बालीवुड की सफल एक्टर दीपिका पादुकोण ने ण्क इंटरव्यू में कहा कि उन्होंने डिप्रेशन के खिलाफ इस जंग को जारी रखेगी। दीपिका ने कहा था कि वह समाज में मौजूद मिथ को तोड़कर ही रहेगी। खुद के इस बीमारी से उबरने के सवाल पर दीपिका ने कहा कि इसके बाद यह गलतफहमी हो गयी कि यह बीमारी सिर्फ सफल या पैसे वाले लोगों को होती है, जबकि हकीकत ये है कि आज की तारीख में कोई भी इसका शिकार हो सकता है।
दीपिका ने कहा कि उन्हें खुद पर फ्रक है कि वह इस बीमारी पर खुलकर बोलने के लिए सामने आयी और अब कई लाेग सामने आ रहे हैं। पदमावत फिल्म के विरोध के समय उनपर कोई अंदर से किसी तरह के तनाव नहीं आया क्योंकि ऐसे लोगों की बातों का बिल्कुल असर नहीं पड़ता है जिनहें पता ही नहीं है कि वे क्या कर रहे हैं।
दीपिका के कहने के बाद पूरे देश में डिप्रेशन को लेकर बड़ी जागरूकता आयी। वह पहली ऐसी प्रसिद्ध हस्ती थी जिन्होंने इस बात को स्वीकार किया वह डिप्रेशन के दौर से गुजरी है जिन्होंने इसका इलाज भी कराया।
दीपिका ने दिखायी थी खतरनाक तस्वीर
देश के अधिकतर लोग मानते हैं कि डिप्रेशन के मरीज समाज के लिए घातक होते हैं और उन्हें समाज से दूर रखना चाहिए। इतना ही नहीं, अधिकतर लोग ऐसे मरीजों के लिए अपशब्दों तक का इस्तेमाल करते हैं। इस दिशा में जागरूकता का आभाव है। यह बात सामने आयी है कि देश में मेंटल हेल्थ पर किये गये देशव्यापी सर्वें से। दो साल पहले हसर्वे डिप्रेशन पर काम करने वाली संगठन लिव-लव-लॉफ ने देश के दिल्ली सहित 9 बड़े शहरों में 3556 लोगों के बीच किया था। दीपिका पादुकोणे भी इस संगठन से जुड़ी है।
- 62 फीसदी लोग डिप्रेशन के मरीज के लिए बहुत ही आपत्तिजनक शब्दों का व्यवहार करते हैं।
- 68 फीसदी लोगों को लगता है कि डिप्रेशन के मरीज को कोई काम नहीं दिया जाए।
- 46 फीसदी लोगों को लगता है कि डिप्रेशन के मरीज से कुछ दूरी रखनी चाहिए, वहीँ 71 मानते लोग मानते हैं कि डिप्रेशन की बीमारी में सोशल स्टिगमा है।
- 41 फीसदी लोग मानते हैं कि बीमारी संक्रामक है और इनके बारे में बात करने से ये फैलती है।
कुछ उम्मीद की रोशनी भी
- 54 फीसदी लोगों ने माना कि ऐेस मरीजों को इलाज से पूरी तरह ठीक किया जा सकता है56 फीसदी लोगाें ने माना कि ऐसे मरीज हिंसक नहीं होते हैं और उन्हें सहयोग की जरूरत है
- 76 फीसदी लोग ऐसे मरीजों के प्रति सहानुभूति रखते हैं और ये मानते हैं कि अगर डिप्रेशन का मरीज ठीक हो जाएं तो उन्हें खुशी होगी
जानिये, दीपिका पादुकोण ने डिप्रेशन के बारे में क्या कहा था
उदास होना और अवसाद में होना दो अलग-अलग चीजें हैं
“उदास होना और अवसाद में होना दो अलग-अलग चीजें हैं। अवसाद से गुजर रहे लोगों को देख कर कुछ पता नहीं चलता है, जबकि कोई उदास इंसान उदास ही दिखाई देगा। सबसे आम प्रतिक्रिया है, ‘आप कैसे अवसादित हो सकते हैं? आपके पास सब कुछ है? आप नंबर एक नायिका हैं और एक आलीशान घर, कार, फिल्में हैं … आपको और क्या चाहिए? “
“लोग शारीरिक फिटनेस के बारे में बात करते हैं, लेकिन मानसिक स्वास्थ्य भी उतना ही महत्वपूर्ण है। मैं लोगों को पीड़ित देखता हूं, और उनके परिवारों को इसके बारे में चर्चा करते हुए शर्म की भावना महसूस होती है। इससे डिप्रेशन से लड़ने में मदद नहीं मिलती है। डिप्रेशन के मरीज को आपके समर्थन की आवश्यकता है। मैं अब इस दिशा में काम करना चाहती हूँ। घबराहट और अवसाद के बारे में जागरूकता पैदा कर लोगों की मदद करना चाहती हूँ ।”
“मैं ऐसा व्यक्ति हूं जो नकारात्मकता को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहती। मुझे कुछ ख़ास पलों में उदासी घेर सकती है, लेकिन मैं इससे निकलना चाहती हूँ। मैं इसे ढोना नहीं चाहती। मैं माफ करना और ख़राब पलों को भूलना, दोनों जानती हूँ। और यही खुश और शांतिपूर्ण जीवन जीने का का एकमात्र तरीका है। “
“बेशक! टूटे हुए दिल को शांत करने में बहुत ताकत लगती है। आपके काम को निपटाने में जोश और उर्जा के इस्तेमाल से मदद मिलती है। इससे एक और फायदा ये होता है आप जिस मानसिक समस्या से गुजर रही होती हैं उसे नकारने के बदले उसे स्वीकार करने में खुद को सक्षम पाती हैं।”
“ये सिर्फ मेरी समस्या नहीं है। लाखों लोग इससे प्रभावित हो रहे हैं। हमें उनके लिए काम करना होगा जो अवसाद से गुजर रहे हैं। यदि हम एक व्यक्ति की भी मदद कर पाते हैं तो मुझे लगता है कि हमने वह हासिल कर लिया है जो हम चाहते थे। “
“मैंने अवसाद से लड़ाई लड़ी है, और दूसरों के लिए इसके बारे में थोड़ी जागरूकता लाना मेरे लिए महत्वपूर्ण था।”