एक डॉक्टर मित्र को कोरोना रोग हुआ। रोग का मतलब उनको लक्षण भी आए। जुकाम अधिक नहीं, लेकिन तेज बदन-तोड़ बुखार। लगभग तीन दिन तक सुस्त पड़े रहे। फिर धीरे-धीरे ठीक हो गए। जब तेज बुखार आता तो पैरासीटामॉल (जैसे क्रोसिन) ले लेते। साँस की तकलीफ़ नहीं हुई, इसलिए घर में ही पड़े रहे। अस्पताल नहीं आए। कहा कि बुखार ने कमजोर बहुत कर दिया था। वे दो-तीन दिन बड़े कठिन थे। उसके बाद तो हालत ठीक हो गयी।
एक दूसरे मरीज ने कहा कि यूँ लगता जैसे माइक टायसन घूँसे मार रहा हो, और आप बिस्तर से उठने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे। एक और मरीज ने कहा कि बुखार तो तेज नहीं था, लेकिन कुछ जुकाम और सुस्ती थी। कुछ मरीज ऐसे भी आए जिनको पेट दर्द था, और जब पेट की जाँच (सी.टी. स्कैन) की तो उसमें कोरोना संक्रमित फेफड़े दिख गए। जबकि उन्हें कोई खाँसी या साँस की तकलीफ़ नहीं थी। ये सभी लोग घर पर ही रहे। अस्पताल में एडमिशन नहीं किया गया।
हम सबके अंदर इतनी क्षमता होती है कि माइक टायसन का घूँसा झेल लें। कमजोर ज़रूर हो जाएँगे लेकिन ठीक भी हो जाएँगे। यही इम्युनिटी है। जब टीका बन कर आएगा, तो वह भी इम्युनिटी ही देगा। लेकिन, अस्सी प्रतिशत से अधिक लोगों में तो बिना टीके के ही इम्युनिटी बन गयी। छोटे-छोटे बच्चों को कोरोना हुआ, और उनका कुछ न कर सका। उनमें भी इससे ड़ने की ताकत थी।
यह ज़रूर है कि कुछ लोग पहले से कमजोर होते हैं। उम्र ज्यादा होती है। गंभीर बीमारियाँ होती है। साँस की तकलीफ़ रहती है। ज़ाहिर है कि उन्हें अगर कोरोना हुआ, तो वे औरों की अपेक्षा कम झेल पाएँगे। उन्हें अस्पताल में एडमिट करना पड़ सकता है। नॉर्वे में मृतकों की औसत आयु लगभग अस्सी वर्ष रही, लेकिन यहाँ की जीवन-शैली ऐसी है कि लोग बुढ़ापे तक पहाड़ों पर चढ़ते हैं। वे फिट हैं। जहाँ सुस्त, कुपोषित, या अस्वस्थ जीवन-शैली के लोग हैं, वहाँ की स्थिति भिन्न है। युवा भी कोरोना की मार नहीं झेल पा रहे। कोरोना आज समस्या आयी है, कल कोई और आएगी। हमें अपने खान-पान और जीवन-शैली पर ध्यान देना होगा। बुढ़ापे तक सक्रिय रहना होगा। प्रतिदिन कुछ चलना, दौड़ना, योग करना या जैसी भी गतिविधि से सुविधा हो।
तभी तो हम माइक टायसन के घूँसे झेल पाएँगे।
(क्रमश:)
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