आखिर क्यों एक गाँव में पिछले दो सालों में पचास से अधिक लोगों की मौत कैंसर से हो गई है?

आदित्य मोहन

सहरसा, सत्तरकटैया के सहरवा गांव में कैंसर के कारण पिछले 2 साल में 50 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और लगभग उतने ही मरीज अभी वर्तमान में भी कैंसर से पीड़ित हैं। स्मिता देवी जिनकी उम्र मात्र 28 वर्ष थी, कल उनकी मौत ब्रेन कैंसर की वजह से हो गई। वे अपने पीछे दो बच्चों को छोड़ गई। सत्तरकटैया में पिछले कुछ सालों में हरेक कुछ दिनों पर कैंसर की वजह से किसी न किसी की मौत हो रही है। अभी वर्तमान में भी करीब 50 के करीब मरीज हैं, आईजीआईएमएस की टीम ने एक दिन में करीब 60 लोगों का टेस्ट किया जिसमें से करीब 35 लोग कैंसर के प्रारम्भिक स्टेज में पाए गए। ब्रेन कैंसर, लीवर कैंसर, लंग कैंसर, थ्रोट कैंसर, यूट्रस कैंसर…जिस कैंसर का भी नाम सुने है, हरेक कैंसर का मरीज गांव में है।

एक गांव के पास ही इतने मरीज कैंसर के, सरकार को इसकी व्यापक जांच करनी चाहिए थी और कारणों का पता करना चाहिए था लेकिन सरकार जैसे सो रही है। आईजीआईएमएस की टीम के जांच में जो 35 लोग प्रारम्भिक स्टेज में पाए गए थे कम से कम उनके इलाज की तो व्यवस्था होती, लेकिन उनको भी पता नहीं किसके भरोसे छोड़ दिया गया है। लोग तिल तिलकर मरने को मजबूर हैं। गरीबी में लोग ईलाज के लिए घर – घरघरारी बेचकर, कर्जा आदि लेकर दिल्ली मुंबई जाने को मजबूर हैं। पीड़ित अधिकांश मरीज अत्यंत गरीब परिवारों से हैं, उनमें से अधिकांश लोगों का बीपीएल कार्ड तक नहीं बना है, आयुष्मान योजना लाभ या राष्ट्रीय वा राजकीय आरोग्य निधि से मदद की बात बहुत दूर की है। कम से कम 10 लोग तो ऐसे हैं जो पीड़ित तो हैं कैंसर से लेकिन ईलाज के लिए पैसा न हो पाने की वजह से बिना ईलाज के बस यूं समझ लीजिए की तिल तिलकर मर रहे हैं। आयुष्मान योजना जैसी योजना जिसका प्रचार होता है 5 लाख तक की मेडिकल सहायता बताकर, उसका सच ये है की उससे सिर्फ पटना और दिल्ली, मुंबई जाकर ईलाज हो पाता है…उसमें भी 5 लाख छोड़िए, कुछ हजार में मदद मिलती है। एक कैंसर पीड़ित महिला आयुष्मान कार्ड लेकर पटना गई ईलाज करवाने, अस्पताल ने बताया की इससे 17000 रुपए का खर्च मिलेगा…12000 का अस्पताल ने जांच कर दिया और 5000 रुपए से ईलाज। कैंसर का इलाज़ 5000 रुपए से, महिला वापस गांव आई और कुछ दिनों में उसकी मौत हो गई।

स्थानीय पत्रकारों और लोगों के बारंबार प्रयास के बावजूद सरकार ने सिर्फ एक बार आईजीआईएमएस की टीम जांच के लिए भेजी है। पीएचईडी की टीम जल परीक्षण के बाद उसमें आर्सेनिक और आइरन होने से इंकार कर चुकी है। ये गांव इस समस्या से लगातार जूझ रहा है और सरकार द्वारा मदद के नाम पर उपेक्षित है। जरूरी है की बिहार स्वास्थ्य मंत्रालय इसे एक स्पेशल केस की तरह ट्रीट करे। कैंसर के कारणों की जांच के लिए एक स्पेशल रीसर्च टीम, स्थानीय अस्पताल में कैंसर स्पेशलिस्ट मेडिकल टीम और ईलाज के लिए सरकारी मेडिकल योजनाओं से आर्थिक मदद…ये तीन चीजें नितांत और अर्जेंटली जरूरत है। सरकारी स्तर पर जो हो सकता है उसके लिए संवाद स्थापित करने की शुरुआत हो चुकी है लेकिन मुझे लगता है इसमें गैरसरकारी प्रयास की भी जरूरत है। सबसे पहले जरूरत है कैंसर के कारणों के ऊपर रिसर्च की।

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