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नॉर्वे में जिस दिन लॉकडाउन की घोषणा की गयी, उसी दिन अस्पतालों को भी लॉकडाउन किया गया। चूँकि यहाँ सरकारी व्यवस्था है तो सरकारी अस्पतालों के दरवाजे बंद कर दिए गए। अस्पताल के बाहर पार्किंग लॉट या खाली मैदान में एक टेंट जैसी व्यवस्था बनी। कोरोना की शंका वाले मरीज वहीं जाएँगे। यह अजीब सौतेलापन लग सकता है, लेकिन व्यवस्था तो यही थी, और आज भी है।
यहाँ एक बात बता दूँ कि नॉर्वे या अन्य यूरोपीय देशों में पुराने ढर्रे की चिकित्सा-व्यवस्था ही है। भारत में, ख़ास कर गाँवों और छोटे शहरों में, एक पारिवारिक चिकित्सक होते थे। जब भी कोई बीमार होता, उन्हीं के पास जाते। जरूरत पड़ने पर वह घर भी आ जाते। उनको आपके परिवार के हर बच्चे की जानकारी होती थी। ज्यादा विकल्प भी नहीं थे, तो उन पर ही विश्वास रखना होता था। वह कह दें कि अब बचने की उम्मीद नहीं तो लोग क्रिया-कर्म की तैयारी करने लगते थे। कोई सेकंड ओपिनियन नहीं। वही कभी-कभार दूसरे बड़े शहर के डॉक्टर के पास भेज देते, तो लोग चले जाते। यह विश्वास की प्रणाली । यहाँ भी हर परिवार को एक चिकित्सक मिल जाता है, जो हर उम्र के लोगों को देख लेते हैं। ऐसा नहीं कि शिशुओं को शिशु-चिकित्सक या महिलाओं को स्त्री-रोग विशेषज्ञ देखेंगे। लगभग 80 प्रतिशत काम तो वह अकेले ही देखेंगे। कभी-कभार जरूरत पड़ने पर विशेषज्ञ के पास भेजेंगे। अगर आप अस्पताल भी गए, ऑपरेशन भी कराया, तो वह काग़ज़ उनके पास पहुँच जाएगा।
कोरोना के समय वे सभी चिकित्सक अपने दरवाजे बंद कर फ़ोन से बात करने लगे। आपको तक़लीफ़ है तो फ़ोन करिए। उन्हें शंका होगी, तो वे जाँच के लिए अर्जी लगा देंगे। इसके अतिरिक्त एक 24 घंटे की हेल्पलाइन भी बन गयी, जिनको आप लक्षण बता सकते हैं। वे भी आपको जाँच के लिए बुला सकते हैं। जिनको भी वे लक्षणों के आधार पर अस्पताल भेजेंगे, वे अगर गाड़ी से आए तो उन्हें गाड़ी से उतरने की मनाही होगी। वे अस्पताल के बाहर पार्किंग-लॉट या कैम्प में गाड़ी खड़ी करेंगे। शीशा नीचे करेंगे, और उनका सैम्पल गाड़ी में बैठे-बैठे ले लिया जाएगा। जो अन्य साधन से आए, उनको एक-एक कर नियत समय बुलाया जाएगा, जब कोई दूसरा मरीज आस-पास न हो। किसी भी हालत में ये लोग अस्पताल की लक्ष्मण-रेखा नहीं लाँघेंगे।
इस माध्यम से किसी भी अन्य मरीज या स्वास्थ्यकर्मी को कोरोना संक्रमण की संभावना घटेगी। कोरोना से मृत्यु उन लोगों की ही अधिक हुई है, जिनको पहले से कोई रोग रहा हो। अस्पताल में तो रोगी ही होते हैं। उन्हें अगर कोरोना हुआ, तो वे गंभीर भी होंगे और मृत्यु भी होगी। इसलिए, उनकी सुरक्षा सर्वोपरि है।
लेकिन, कैम्प तो एक अस्थायी जाँच-व्यवस्था है। उनका क्या, जो कोरोना पॉजिटिव निकल गए? क्या उनके बिस्तर भी टेंट में ही लगाए जाएँगे?
(क्रमश:)
(अगर डॉक्टर से कुछ जानने की जिज्ञासा हो या कोई सवाल तो मेल करें-healthwirenewsbank@gmail.com पर)