एपिसोड 4: एक डॉक्टर की डायरी, कोविड काल में

डॉक्टर प्रवीण झा

कोरोना पॉजिटिव के मन में कई प्रश्न उठते हैं? पहला तो यही कि अब ठीक कैसे होगा? घर में बैठे-बैठे ऐसा क्या जादू होगा कि ठीक हो जाएगा? अगर बिना दवा के ही ठीक हो जाएगा, तो दुनिया में इतना हड़कंप क्यों मचा है? हज़ारों लोग मर क्यों रहे हैं? पॉजिटिव होने पर भी डॉक्टर मुझे दवा क्यों नहीं दे रहे?

किसी भी बीमारी में दवा मुख्यत: दो कारणों से दी जाती है। एक बीमारी की जड़ के निवारण के लिए, दूसरी बीमारी के लक्षणों के इलाज के लिए। जैसे कोरोना के केस में जड़ तो कोरोना ही है। कोरोना के खात्मे के लिए कोई दवा बनी नहीं है।

लक्षणों के निवारण के लिए दवाएँ हैं। जैसे, किसी को अगर खाँसी-जुकाम हो, तो घरेलू इलाज या दवाएँ ले सकते हैं। कुछ लोग नहीं लेते, कुछ खाँसी के सिरप लेते हैं, तो कोई खिचखिचाहट के लिए उपलब्ध टॉफ़ियाँ मुँह में रख लेते हैं। इसके लिए लोग चिकित्सक से संपर्क नहीं करते या कम करते हैं। बुखार अगर 100 डिग्री फारेनहाइट से अधिक हो, तो लोग बुखार की दवा भी ले लेते हैं। वह हर देश और चिकित्सक के अपने-अपने नियम भी हो सकते हैं। भारत में तो आयुर्वेद भी है। यहाँ, नॉर्वे में, जब आप पॉजिटिव आए, तभी कह दिया जाएगा कि बुखार ज्यादा आए तो पैरासिटामोल ले लेना। लेकिन, यह निर्णय मरीज के चिकित्सक का ही है। क्योंकि चिकित्सा-शास्त्र में कई बातें कानून के पेंच की तरह होती हैं।

दवा के साइड-इफेक्ट भी होते हैं, और कुछ रोगियों को ख़ास दवा मना भी होती है। और जैसा पिछले एपिसोड में बताया, कि गंभीर लक्षणों में एडमिशन किया जाता है, और वहाँ अस्पताल ही इलाज तय करती है।

लेकिन, ये दवाएँ कोरोना का इलाज नहीं कर रही। मैंने जैसे कहा कि कोरोना का इलाज अभी बना ही नहीं। तो फिर लोग ठीक कैसे हो रहे हैं? दरअसल 80-90 % कोरोना पॉजीटिव की दवा बाज़ार या अस्पताल में नहीं, उनके अपने शरीर में ही है। इस पर आगे बात करेंगे (क्रमश:)

(अगर डॉक्टर से कुछ जानने की जिज्ञासा हो या कोई सवाल तो मेल करें-healthwirenewsbank@gmail.com पर)

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