प्रवासी मजदूरों को लॉकडाउन लागू किए जाने से पहले ही घर जाने की अनुमति दे दी जानी चाहिए थी। ऐसा करने कोरोना वायरस के मामलों को बढ़ने से रोका जा सकता था।
एम्स, जेएनयू, बीएचयू समेत अन्य संस्थानों से जुड़े जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों के समूह का मानना है कि प्रवासी मजदूरों को पहले ही घर जाने की अनुमति दे देने से संक्रमण इस हद तक न फैला रहता।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, कोविड-19 से मरने वाले लोगों की संख्या बढ़कर 5,164 हो गई और संक्रमितों की संख्या 1,82,143 पर पहुंच गई है।
विशेषज्ञों द्वारा रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘लौट रहे प्रवासी अब देश के हर हिस्से तक संक्रमण लेकर जा रहे हैं। ज्यादातर उन जिलों के ग्रामीण और शहरी उपनगरीय इलाकों में जा रहे हैं जहां मामले कम थे और जन स्वास्थ्य प्रणाली अपेक्षाकृत कमजोर है।’’
ये रिपोर्ट इंडियन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन (आईपीएचए) , इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन (आईएपीएसएम) और इंडियन एसोसिएशन ऑफ एपिडेमोलॉजिस्ट (आईएई) के विशेषज्ञों द्वारा तैयार की गई है।
इस रिपोर्ट की माने तो 25 मार्च से 30 मई लागू ‘‘सख्त’’ लॉक डाउन में मामले तेजी से बढ़े। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि जनता को इस बीमारी के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं दी गई ।
सामान्य प्रशासनिक नौकरशाहों पर जरुरत से ज्यादा भरोसा करना भी संक्रमण को न रोक पाने का एक बड़ा कारण रहा। जबकि जरुरत इस बात की थी कि महामारी विज्ञान, जन स्वास्थ्य, सामाजिक वैज्ञानिकों से सलाह लेना और उस पर अमल करना।
इसमें कहा गया है कि भारत मानवीय संकट और बीमारी के फैलने के लिहाज से भारी कीमत चुका रहा है।