वर्तमान कोविड-19 पैंडेमिक के दौरान अनेक लोग विटामिन सी के सेवन के विषय में प्रश्न पूछ रहे हैं। क्या विटामिन सी की अत्यधिक मात्रा लेकर कोविड-19 से बचा जा सकता है अथवा उसकी रोगकारिता कम की जा सकती है ?
फ़्लू व इस-जैसे रोगों में विटामिन सी की पैरवी आज से नहीं , दशकों से चल रही है। यह बात अलग है कि यह झूठी है।
विटामिन सी का अतिशय सेवन किसी रोग से किसी की रक्षा नहीं करता।
एक पुरानी कहानी
मैडम मल्टीवाइटमिन की गोलियाँ प्रतिदिन लेती हैं। बिना यह जाने-समझे कि इन गोलियों को खाने से होता क्या है।
“क्यों खाती हैं आप इन्हें ? वह भी रोज़-रोज़ ? आपको पता है कि विटामिन क्या हैं ? और उनका शरीर में क्या रोल है ?”
“नॉट श्योर…बट दे बूस्ट ऑर इम्यून-सिस्टम , इज़ंट इट ? अभी स्नेहिल को ज़ुकाम हुआ था तो मैंने उसे खूब सारा ऑरेन्ज-जूस पिलाया। ही इम्प्रूव्ड फ़ास्ट।” वे नफ़ासत के साथ बताती हैं।
मैं उन्हें एकटक देख रहा हूँ और मुझे लिनस पाउलिंग याद आ रहे हैं। प्रख्यात वैज्ञानिक , रसायनविद् जिन्हें दो-दो नोबेल पुरस्कार मिले थे , एक केमिस्ट्री में और दूसरा शान्ति के लिए। उन्होंने बेसिरपैर का यह सिद्धान्त दे दिया कि विटामिन सी प्रचुर मात्रा में खाने से ज़ुकाम ही नहीं , कई बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं।
“आपको लगता है कि स्नेहिल का ज़ुकाम विटामिन सी ने ठीक क्या होगा ? आपको इसका इतना यकीन कैसे है ? ” मैं उनसे पूछता हूँ।
“आइ रेड इट समव्हेयर। ग़लत बात है ?” वे फिर पूछती हैं।
“जी , बिलकुल ग़लत बात है। आप भी लाखों अमेरिकियों की तरह विटामिन-भक्ति का शिकार हुई हैं। लिनस पाउलिंग नाम के एक विश्वविख्यात केमिस्ट थे, यह मायाजाल उनका फैलाया हुआ है जो आज तक चला आ रहा है कि विटामिन सी में जादू है। वे विटामिन सी से ऐसे ऑब्सेज़्ड हुए कि १९७० में एक पुस्तक तक लिखी ‘विटामिन सी एंड द कॉमन कोल्ड’ के नाम से। उसमें उन्होंने तीन ग्राम तक विटामिन सी खाने की बात कह डाली। बस फिर क्या था ? पूरे अमेरिका में विटामिन सी की गोलियों की सेल आसमान छूने लगी। जहाँ देखो , बस विटामिन सी , विटामिन सी , विटामिन सी।”
“पाउलिंग का तब बड़ा नाम था और उनकी कही बात पर लोग कैसे न विश्वास करते ? वे तो कहते थे विटामिन सी खाओगे तो बीस से पच्चीस साल ज़्यादा जियोगे। कई साल लग गये , बाकी वैज्ञानिकों को यह समझाने में कि पाउलिंग की बात गलत है , उसमें कोई दम नहीं है , विटामिन सी खाने से ज़ुकाम ठीक नहीं होता।”
” बट देन , व्हाई डिड पीपुल नॉट क्वेश्चन हिम ? आइ मीन सवाल तो करना चाहिए था , पूरे यूनाइटेड स्टेट्स में कोई भी ऐसा आदमी निकल कर नहीं आया ?” मैडम हैरत से पूछती हैं।
“भक्ति मैडम , भक्ति। जब आप किसी के भक्त हो जाते हैं तो उसके कहे-किये पर सवाल नहीं उठाते। और फिर लिनस पाउलिंग पर जिन्होंने दो बार नोबेल प्राइज़ जीता हो ? न , न , न।”
“स्ट्रेंज।” मैडम ताज्जुब भरा उच्छ्वास छोड़ती हैं।
“जब वैज्ञानिक विज्ञान से बड़ा हो जाता है तो भक्ति का रोग वहाँ भी लग जाता है , मैडम। मगर फिर भी विज्ञान को इस दुर्गति से बाकी वैज्ञानिक देर-सबेर निकाल लेते हैं और उन्हें पब्लिक कुछ भी भलाबुरा नहीं कहती।”
‘कॉज़ द साइंस इज़ अ लेटेस्ट किड ऑन द ब्लॉक। इट इज़ द न्युएस्ट ऑफ़ ऑल रेलिजंस। एंड वी हैव फ्यू साइंस फैनेटिक्स , येट।” वे मुस्कुराती हैं।
“साइंस नेवर एनकरेजेज़ फेनेटिसिज़्म। नहीं तो विज्ञान ,विज्ञान रहेगा ही नहीं। बात चाहे लिनस पाउलिंग की हो या किसी और की। विटामिन सी का झूठा महिमामण्डन नहीं होगा। विज्ञान धर्म की तरह अन्धा नहीं है, वह आस्था पर नहीं चला करता।” मैं बात समाप्त करता हूँ।
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अब तक के निष्कर्ष ये हैं —- क्या विटामिन सी घाव भरने में मददगार है ?
उत्तर है हाँ , लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि उसे अधिक मात्रा में लेने पर
घाव जल्दी भर जाएगा। उसे लेंगे तो सही समय पर भरेगा , नहीं लेंगे तो हो
सकता है देर हो जाए। दूसरा प्रश्न कि क्या विटामिन सी लेने से ज़ुकाम-खाँसी
जल्दी ठीक हो जाते हैं ? उत्तर है नहीं। वे नियत समय में ही ठीक होते हैं।
फिर प्रश्न है कि क्या विटामिन सी लेने से ज़ुकाम-खाँसी कम होते हैं ? उत्तर
है पता नहीं। और शोध चाहिए। लेकिन मोटी और अन्तिम बात यह है कि सन्तुलित
आहार के रूप में विटामिन सी लेते रहा जाए , न बहुत ज़्यादा और न बहुत कम।
सारी समस्या विटामिन सी को जादुई गोली समझने में है जिसे लेने से
ज़ुकाम-खाँसी होंगे नहीं और होंगे तो जल्दी ठीक हो जाएँगे।)
(लेखक लखनऊ स्थित डॉक्टर हैं और मेडिकल विषयों पर आम लोगों की बोलचाल में लिखने वाले लोकप्रिय लेखक हैं.)