लॉकडाउन के दौरान बच्चों में डिप्थीरिया, खसरा, टिटनेस और पोलियो जैसी बीमारियों के नियमित टीकाकरण प्रभावित होने से इस तरह की समस्याओं के फिर से सिर उठाने की आशंका पैदा हो गई है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में एक साल से कम उम्र के करीब आठ करोड़ बच्चों को डिप्थीरिया, खसरा और पोलियो जैसी बीमारियों का खतरा है क्योंकि कोविड-19 के कारण लगे लॉकडाउन में उनका नियमित टीकाकरण नहीं हो सका।
भारत हर महीने राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के तहत एक साल से कम उम्र के करीब 20-22 लाख बच्चों को टीके लगाने का लक्ष्य रखता है।
इस तरह प्रत्येक वर्ष करीब 2.6 करोड़ बच्चों का टीकाकरण राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के तहत हो जाता है। लॉकडाउन के पहले दो चरण में कई वज़हों से टीकाकरण का काम प्रभावित हुआ है।
पहले तो लोग परिवहन के साधन नहीं होने की वजह से टीकाकरण केंद्रों तक नहीं पहुंच सके। कई राज्यों में सरकारी स्वास्थ्य मशीनरी के महामारी से निपटने में व्यस्त रहने की वजह से टीकाकरण शिविरों को अस्थायी रूप से बंद कर देना पड़ा।
उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों ने लॉक डाउन के बाद टीकाकरण कार्यक्रम रोक दिया था। गांवों में लगने वाले नियमित शिविर भी स्थगित कर दिए गए थे।
ओडिशा, राजस्थान, केरल और दिल्ली ने भी कुछ दिन के लिए इस तरह के अभियानों को रोक दिया था।
देशभर में स्वास्थ्य देखभाल समन्वय की गतिविधियों से जुड़े राष्ट्रीय मंच ‘जन स्वास्थ्य अभियान’ की सदस्य छाया पचौली ने कहा, ‘‘कई राज्यों ने नियमित स्वास्थ्य देखभाल गतिविधियों को रोक दिया है जिनमें टीकाकरण भी शामिल है। संभव है कि इस अवरोध की वजह से 15 लाख से अधिक बच्चे पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से टीकाकरण से वंचित रह गये हों। राज्यों ने सेवाएं शुरू कर दी हैं, लेकिन बड़ी संख्या में लंबित मामले हैं।’’
हालांकि लॉकडाउन की अवधि में कितने बच्चे टीकाकरण से वंचित रह गये, इस बारे में कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है। सरकारी सूत्रों के अनुसार बड़ी संख्या में बच्चे लॉकडाउन के शुरुआती चरण में टीकाकरण से वंचित रहे होंगे लेकिन सभी राज्यों ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ बातचीत के बाद टीकाकरण कार्यक्रम पुन: शुरू कर दिया।
कई अन्य देशों ने लॉकडाउन की वजह से टीकाकरण पूरी तरह बंद कर दिया और टीकों की आपूर्ति नहीं हुई, वहीं भारत केंद्र सरकार के लगातार जोर देने की वजह से हालात से उबर पाया और उसने आपूर्ति श्रृंखला को भी क्रमिक तरीके से बनाकर रखा।
कोविड-19 प्रकोप के दौरान टीकाकरण को लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा दिशानिर्देश जारी किये जाने के बाद राज्य न केवल अभियान को पुन: शुरू करने के लिए बल्कि लंबित मामलों पर भी ध्यान देने को तैयार हुए।
एनजीओ ‘जन स्वास्थ्य सहयोग’ के डॉ योगेश जैन के अनुसार जिन बच्चों को टीके नहीं लग सके, उनकी संख्या 15 लाख से ज्यादा हो सकती है।
यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोविड-19 के कारण पूरे दक्षिण एशिया में करीब 40 लाख 50 हजार बच्चों को नियमित टीकाकरण नहीं हो पाया है। कोविड-19 से पहले भी ऐसी स्थितियां थीं लेकिन अब ज़्यादा चिंताजनक हो गई हैं।
यूनिसेफ ने चिंता जाहिर की है कि अगर बच्चों को समय से टीका या वैक्सीन नहीं दिया गया तो दक्षिण एशिया में एक और स्वास्थ्य आपातकाल का सामना करना पड़ सकता है।
दुनिया के लगभग एक चौथाई (40.5 लाख) बच्चे जिनका टीकाकरण नहीं हुआ है या पूरे वैक्सीन नहीं लगे है, वो दक्षिण एशिया में रहते हैं। इनमें से करीब 97 प्रतिशत बच्चे भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में रहते हैं।